हेलो दोस्तों तो स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग History Of India In Hindi - Pageofhistory में कहते हैं देवताओं में त्रिदेव का सबसे अलग स्थान प्राप्त है | इसमें ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता,भगवान विष्णु को संरक्षक और भगवान शिव को विनाशक कहा जाता है | ऐसे में कई लोग यह सोचते हैं कि त्रिदेव की उत्पत्ति आखिर कैसे हुई | आखिर कैसे उन्होंने जन्म लिया इस खास माया रुपी संसार में.. अगर आप इस बारे में सोचते हैं तो यह पोस्ट जरूर पढ़िए | आज हम आपको बताने वाले हैं कि आखिर कैसे हुई त्रिदेव की उत्पत्ति | इस प्रसंग में दोस्तों तीन प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं पहली कहानी शिव पुराण की है | दूसरी भागवत गीता की और तीसरी है सप्तऋषीओ की | तो सबसे पहले शुरू करते हैं शिव पुराण से.......
शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार ब्रम्हा और विष्णु मे विवाद हो गया कि दोनों में से आखिर बड़ा कौन है |
जब विवाद इतना बढ़ गया कि उन दोनों में युद्ध की नौबत आ गई तब उन दोनों के मध्य एक बड़ा सा अग्निस्तम्भ प्रकट हो गया | अब उन दोनों ने यह निश्चय किया कि जो भी पहले इस अग्निस्तम्भ के अंत को पा लेग वही श्रेष्ठ होगा | भगवान विष्णु उस स्तम्भ के अंत को पाने के लिए नीचे की ओर गए और ब्रह्मा जी ऊपर की तरफ गए | दोनों में से कोई भी इस स्तम्भ के अंत को पाने में सफल ना रहा | भगवान विष्णु ने तो अपनी हार स्वीकार कर ली परंतु ब्रह्मा जी ने असत्य कहा कि उन्हें अंत मिल गया है | इसीलिए मैं ही श्रेष्ठ हू | ब्रह्मा जी के मुख से असत्य सुनकर उस अग्निस्तम्भ में से शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी के पांच मुख में से जो मुख असत्य बोला था उसे काट दिया
और यह श्राप दिया कि संसार में उनकी पूजा कभी नहीं होगी | भगवान विष्णु से प्रसन्न होकर उन्हें अपने सामान पूजे जाने का वरदान दिया | यह कथा शिव पुराण की है जिसके अनुसार शिवजी सबसे बड़े हैं |
लेकिन अब बात करते हैं | श्रीमद् भागवत कथा की उस विषय में क्या कहते हैं आइए जानते हैं एक बार सप्तऋषियों में यह चर्चा हो रही थी कि ब्रह्मा विष्णु और महेश में से आखिर बड़ा कौन है | इसीलिए उन्होंने त्रिदेव देवो की परीक्षा लेने का सोचा और यह कार्य भृंगु ऋषि को सौंपा गया | अपने इस उद्देश्य से भृंगु ऋषि परमपिता ब्रह्मा के पास गए और उन्होंने उनका अपमान किया | इस अपमान के बाद ब्रह्मा जी बहुत क्रोधित हो गए | उस के बाद ऋषि शिवजी के पास गए उन्होंने शिव जी का भी अपमान किया और फिर वह भगवान विष्णु के पास गए वहां भगवान विष्णु अपनी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे |
ऋषि ने जाकर सीधे भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर लात मारी | उनके इस कृत्य से भगवान विष्णु को तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने ऋषि के पैर पकड़ लिये और कहा महर्षि आपके पैर में कहीं चोट तो नहीं लगी मेरा वक्षस्थल बहुत कठोर है और आपके पैर बहुत कोमल है भगवान विष्णु की ये विनम्रता को देख भृंगु ऋषि ने भगवान विष्णु से क्षमा मांगी और फिर सब सप्तऋषयो ने यह स्वीकार कर लिया कि ब्रह्मा,विष्णु और महेश में से भगवान विष्णु ही श्रेष्ठ है | लेकिन दोस्तों अगर इन कथाओं के बावजूद हम सोच विचार करें तो मनुष्य कभी भी त्रिदेवों की तुलना नहीं कर सकते | शिव पुराण,विष्णु पुराण दोनों में ही इन तीनों देवों को अभिन्न बताया है | और इनमें कोई भी पुख्ता सबूत नहीं है कि आखिर इनमें से सबसे बड़ा कौन है |
अब बात करते हैं एक आखरी कथा की इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु भगवान और शिव जी एक साथ बैठे थे | भगवान शिव ने एक बार सोचा अगर मैं विनाशक हूं तो क्या मैं हर चीज का विनाश कर सकता हूं | क्या मैं ब्रह्मा और विष्णु का भी विनाश सकता हूं | क्या उन पर मेरी शक्तियां कारगर होगी | जब भगवान शिव के मन में यह विचार आया तब भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी समझ गए कि उनके मन में क्या चल रहा है | वह दोनों मुस्कुराने लगे | फिर ब्रह्मा जी बोले महादेव आप अपनी शक्तियां मुझ पर क्यों नहीं आजमाते मैं भी यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि आप की शक्तियां मुझ पर कारगर रहेंगी या नहीं | जब ब्रह्मा भगवान ने हट किया तो शिव जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया ब्रह्माजी जलकर गायब हो गए और उनकी जगह एक राख का छोटा सा ढेर लग गया | शिवजी चिंतित हो गए कि मैंने क्या कर दिया | अब इस विश्व का क्या होगा | भगवान विष्णु मुस्कुरा रहे थी | उनकी मुस्कान और भी चौड़ी हो गई जब उन्होंने शिवजी को पछताते हुए घुटनों के बल बैठते देखा | शिवजी पछताते हुए उस राख को मुट्ठी में लेने ही वाले थे कि से ब्रह्मा जी दुबारा प्रकट हो गए वे बोले महादेव मैं कहीं नहीं गया हूं | मैं यहीं पर हूं देखो आप के विनाश के कारण इस राख की रचना हुई | जहां भी रचना होती है मैं वहां होता हूं इसीलिए मैं आप की शक्तियों से भी समाप्त नहीं हुआ | भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले महादेव मैं संसार का रक्षक हूं मैं भी देखना चाहता हूं क्या मैं आपकी शक्तियों से स्वयं ही अपनी रक्षा कर सकता हूं | कृपया मुझ पर अपनी शक्तियों का प्रयोग कीजिए | तो शिव जी ने विष्णु जी पर अपनी सारी शक्तियां लगा दी विष्णु जी के स्थान पर अब वहा भी राख का ढेर था | लेकिन उनकी आवाज राख के ढेर से आ रही थी | महादेव मैं अभी यहीं हूं कृपया रुके नहीं अपनी शक्तियों का प्रयोग इस राख पर करते रहिए | जब तक मैं मर ना जाऊं यानी कि इस राख का आखरी कण भी जब तक खत्म न हो जाए | भगवान शिव ने अपनी सारी शक्ति और तेज लगा दिया | राख कम होनी शुरू हो गई अंत में उस राख का सिर्फ एक कण बचा भगवान शिव ने अपनी सारी शक्तियां उस पर भी लगा दी लेकिन उस कण को समाप्त नहीं कर पाए | भगवान विष्णु उस कण से पुनः प्रकट हो गए और यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें भगवान शिव भी समाप्त नहीं कर सकते | भगवान शिव ने मन ही मन सोचा मुझे विश्वास हो गया है मैं ब्रह्मा और विष्णु को सीधे समाप्त नहीं कर सकता लेकिन अगर मैं स्वयं का विनाश कर लूं तो वह भी समाप्त हो जाएंगे क्योंकि अगर मैं नहीं रहा तो विनाश संभव नहीं होगा और बिना विनाश के रचना कैसी | ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों समाप्त हो जाएंगे | अगर रचना ही नहीं रहेगी तो उनकी रक्षा कैसे होगी | विष्णु जी यह सब मन ही मन सुन रहे थे वह समझ गए थे शिवजी क्या करना चाहते हैं | भगवान शिव ने स्वयं का विनाश कर लिया और जैसे वह सोच रहे थे वैसे ही हुआ जैसे ही वह जलकर राख में तब्दील हुए ब्रह्मा और विष्णु भी राख में बदल गए कुछ समय के बाद सबकुछ अंधकार में हो गया | वहा तीनों देवों की राख के सिवाय कुछ नहीं था उसी राह के ढेर से एक आवाज आई मैं ब्राह्मण मैं देख सकता हूं कि यहां राख की रचना हुई है जहां रचना होती है मैं वहां होता हूं | इस तरह उस राख से पहले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए उसके बाद विष्णु जी और शिव जी क्योंकि जहां रचना होती है |
वहां पहले सुरक्षा आती है और फिर विनाश इस तरह शिव जी को बोध हुआ कि त्रिदेव का विनाश असंभव है | इस घटना की स्मृति के रूप में भगवान शिव ने उस राख को अपने शरीर में लेप लिया और उसे शिव भस्म कहा जाने लगा | दोस्तों इस से साफ जाहिर होता है कि त्रिदेव की तुलना आपस में करना बहुत मुश्किल है क्योंकि तीनों देव बहुत शक्तिशाली है जहां रचना होती है वहां ब्रह्मा होंगे और रचना की सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु हमेशा तत्पर रहेंगे और अगर रचना है और साथ ही साथ सुरक्षा है तो ऐसे में आने वाले समय में विनाश भी जरूरी है क्योंकि विनाश के बलबूते दोबारा रचना नहीं हो सकती ऐसे में तीनों देव बहुत ही महत्वपूर्ण है |