शनिवार, 15 अगस्त 2020

Bramha Vishnu Mahesh Main Sabse Bada Kon Hai?

हेलो दोस्तों तो स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग History Of India In Hindi - Pageofhistory में कहते हैं देवताओं में त्रिदेव का सबसे अलग स्थान प्राप्त है | इसमें ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता,भगवान विष्णु को संरक्षक और भगवान शिव को विनाशक कहा जाता है |  ऐसे में कई लोग यह सोचते हैं कि त्रिदेव की उत्पत्ति आखिर कैसे हुई | आखिर कैसे उन्होंने जन्म लिया इस खास माया रुपी संसार में..  अगर आप इस बारे में सोचते हैं तो यह पोस्ट जरूर पढ़िए | आज हम आपको बताने वाले हैं कि आखिर कैसे हुई त्रिदेव की उत्पत्ति | इस प्रसंग में दोस्तों तीन प्रकार की कहानियां प्रचलित हैं पहली कहानी शिव पुराण की है | दूसरी भागवत गीता की और तीसरी है सप्तऋषीओ की | तो सबसे पहले शुरू करते हैं शिव पुराण से....... 


शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार ब्रम्हा और विष्णु मे विवाद हो गया कि दोनों में से आखिर बड़ा कौन है | 

जब विवाद इतना बढ़ गया कि उन दोनों में युद्ध की नौबत आ गई तब उन दोनों के मध्य एक बड़ा सा अग्निस्तम्भ प्रकट हो गया | अब उन दोनों ने यह निश्चय किया कि जो भी पहले इस अग्निस्तम्भ के अंत को पा लेग वही श्रेष्ठ होगा |  भगवान विष्णु उस स्तम्भ के अंत को पाने के लिए नीचे की ओर गए और ब्रह्मा जी ऊपर की तरफ गए | दोनों में से कोई भी इस स्तम्भ के अंत को पाने में सफल ना रहा | भगवान विष्णु ने तो अपनी हार स्वीकार कर ली परंतु ब्रह्मा जी ने असत्य कहा कि उन्हें अंत मिल गया है | इसीलिए मैं ही श्रेष्ठ हू | ब्रह्मा जी के मुख से असत्य सुनकर उस अग्निस्तम्भ में से शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी के पांच मुख में से जो मुख असत्य बोला था उसे काट दिया

और यह श्राप दिया कि संसार में उनकी पूजा कभी नहीं होगी | भगवान विष्णु से प्रसन्न होकर उन्हें अपने सामान पूजे जाने का वरदान दिया | यह कथा शिव पुराण की है जिसके अनुसार शिवजी सबसे बड़े हैं | 






bramha vishnu mahesh


लेकिन अब बात करते हैं | श्रीमद् भागवत कथा की उस विषय में क्या कहते हैं आइए जानते हैं एक बार सप्तऋषियों में यह चर्चा हो रही थी कि ब्रह्मा विष्णु और महेश में से आखिर बड़ा कौन है | इसीलिए उन्होंने त्रिदेव देवो  की परीक्षा लेने का सोचा और यह कार्य भृंगु ऋषि को सौंपा गया | अपने इस उद्देश्य से भृंगु ऋषि परमपिता ब्रह्मा के पास गए और उन्होंने उनका अपमान किया | इस अपमान के बाद ब्रह्मा जी बहुत क्रोधित हो गए | उस के बाद ऋषि शिवजी के पास गए उन्होंने शिव जी का भी अपमान किया और फिर वह  भगवान विष्णु के पास गए वहां भगवान विष्णु अपनी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे | 




ऋषि ने जाकर सीधे भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर लात मारी  | उनके इस कृत्य से भगवान विष्णु को तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने ऋषि के पैर पकड़ लिये और कहा महर्षि आपके पैर में कहीं चोट तो नहीं लगी मेरा वक्षस्थल बहुत कठोर है और आपके पैर बहुत कोमल है भगवान विष्णु की ये विनम्रता को देख भृंगु ऋषि ने भगवान विष्णु से क्षमा मांगी और फिर सब सप्तऋषयो ने यह स्वीकार कर लिया कि ब्रह्मा,विष्णु और महेश में से भगवान विष्णु ही श्रेष्ठ है | लेकिन दोस्तों अगर इन कथाओं के बावजूद हम सोच विचार करें तो मनुष्य कभी भी त्रिदेवों की तुलना नहीं कर सकते | शिव पुराण,विष्णु पुराण दोनों में ही इन तीनों देवों को अभिन्न बताया है | और इनमें कोई भी पुख्ता सबूत नहीं है कि आखिर इनमें से सबसे बड़ा कौन है | 




अब बात करते हैं एक आखरी कथा की इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु भगवान और शिव जी एक साथ बैठे थे |  भगवान शिव ने एक बार सोचा अगर मैं विनाशक हूं तो क्या मैं हर चीज का विनाश कर सकता हूं | क्या मैं ब्रह्मा और विष्णु का भी विनाश सकता हूं | क्या उन पर मेरी शक्तियां कारगर होगी | जब भगवान शिव के मन में यह विचार आया तब भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी समझ गए कि उनके मन में क्या चल रहा है | वह दोनों मुस्कुराने लगे | फिर ब्रह्मा जी बोले महादेव आप अपनी शक्तियां मुझ पर क्यों नहीं आजमाते मैं भी यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि आप की शक्तियां मुझ पर कारगर रहेंगी या नहीं | जब ब्रह्मा भगवान ने हट किया तो शिव जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया ब्रह्माजी जलकर गायब हो गए और उनकी जगह एक राख का छोटा सा ढेर लग गया | शिवजी चिंतित हो गए कि मैंने क्या कर दिया |  अब इस विश्व का क्या होगा | भगवान विष्णु मुस्कुरा रहे थी | उनकी मुस्कान और भी चौड़ी हो गई जब उन्होंने शिवजी को पछताते हुए घुटनों के बल बैठते देखा | शिवजी पछताते हुए उस राख को मुट्ठी में लेने ही वाले थे कि से ब्रह्मा जी दुबारा प्रकट हो गए वे बोले महादेव मैं कहीं नहीं गया हूं | मैं यहीं पर हूं देखो आप के विनाश के कारण इस राख की रचना हुई | जहां भी रचना होती है मैं वहां होता हूं इसीलिए मैं आप की शक्तियों से भी समाप्त नहीं हुआ | भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले महादेव मैं संसार का रक्षक हूं मैं भी देखना चाहता हूं क्या मैं आपकी शक्तियों से स्वयं ही अपनी रक्षा कर सकता हूं | कृपया मुझ पर अपनी शक्तियों का प्रयोग कीजिए |  तो शिव जी ने विष्णु जी पर अपनी सारी शक्तियां लगा दी विष्णु जी के स्थान पर अब वहा भी राख का ढेर था | लेकिन उनकी आवाज राख के ढेर से आ रही थी | महादेव मैं अभी यहीं हूं कृपया रुके नहीं अपनी शक्तियों का प्रयोग इस राख पर करते रहिए | जब तक मैं मर ना जाऊं यानी कि इस राख का आखरी कण भी  जब तक खत्म न हो जाए | भगवान शिव ने अपनी सारी शक्ति और तेज लगा दिया | राख कम होनी शुरू हो गई अंत में उस राख का सिर्फ एक कण बचा भगवान शिव ने अपनी सारी शक्तियां उस पर भी लगा दी लेकिन उस कण को समाप्त नहीं कर पाए | भगवान विष्णु उस कण से पुनः प्रकट हो गए और यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें भगवान शिव भी समाप्त नहीं कर सकते | भगवान शिव ने मन ही मन सोचा मुझे विश्वास हो गया है मैं ब्रह्मा और विष्णु को सीधे समाप्त नहीं कर सकता लेकिन अगर मैं स्वयं का विनाश कर लूं तो वह भी समाप्त हो जाएंगे क्योंकि अगर मैं नहीं रहा तो विनाश संभव नहीं होगा और बिना विनाश के रचना कैसी | ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों समाप्त हो जाएंगे | अगर रचना ही नहीं रहेगी तो उनकी रक्षा कैसे होगी | विष्णु जी यह सब मन ही मन सुन रहे थे वह समझ गए थे शिवजी क्या करना चाहते हैं | भगवान शिव ने स्वयं का विनाश कर लिया और जैसे वह सोच रहे थे वैसे ही हुआ जैसे ही वह जलकर राख में तब्दील हुए ब्रह्मा और विष्णु भी राख में बदल गए कुछ समय के बाद सबकुछ अंधकार में हो गया | वहा तीनों देवों की राख के सिवाय कुछ नहीं था उसी राह के ढेर से एक आवाज आई मैं ब्राह्मण मैं देख सकता हूं कि यहां राख की रचना हुई है जहां रचना होती है मैं वहां होता हूं | इस तरह उस राख से पहले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए उसके बाद विष्णु जी और शिव जी क्योंकि जहां रचना होती है | 



वहां पहले सुरक्षा आती है और फिर विनाश इस तरह शिव जी को बोध हुआ कि त्रिदेव का विनाश असंभव है | इस घटना की स्मृति के रूप में भगवान शिव ने उस राख को अपने शरीर में लेप लिया और उसे शिव भस्म कहा जाने लगा | दोस्तों इस से साफ जाहिर होता है कि त्रिदेव की तुलना आपस में करना बहुत मुश्किल है क्योंकि तीनों देव बहुत शक्तिशाली है जहां रचना होती है वहां ब्रह्मा होंगे और रचना की सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु हमेशा तत्पर रहेंगे और अगर रचना है और साथ ही साथ सुरक्षा है तो ऐसे में आने वाले समय में विनाश भी जरूरी है क्योंकि विनाश के बलबूते दोबारा रचना नहीं हो सकती ऐसे में तीनों देव बहुत ही महत्वपूर्ण है | 

बुधवार, 22 जुलाई 2020

1947 में भारत कैसा था? | India in 1947

आज भारत की आजादी को 71 साल होने को है तब वर्तमान देशवासियों के लिए यह कल्पना भी कर पाना मुश्किल होगा कि सन 1947 का भारत कैसा था तो चलिए आज हम उससे पर्दा उठाते हैं और जानते हैं कि तब भारत के दशा क्या थी | 



साक्षरता की बात करें तो आजादी के वक्त पूरे अखंड भारत में सिर्फ 12% लोग ही पढ़ और लिख सकते थे | पूरे देश में कुल 5000 हाई स्कूल थे 600  कॉलेज और 25 यूनिवर्सिटी थी |  तो आइये थोड़ा सलीके से मुद्दे के मुताबिक समझते हैं | 1947 में भारतीय रेलवे 16 अप्रैल 1853  के दिन भारत में पहली बार मुंबई के बोरीबंदर से ठाणे के बीच बीच 20 डब्बो वाली ट्रेन चली | इस सफर में महज 33 किलोमीटर के अंतर को काटने के लिए तीन तीन इंजन लगाए हुए थे | फिर भी सफर को तय करने में ट्रेन को पूरे 75 मिनट लगे | धीरे-धीरे तकनीकी सुधार होते रहे और जब अंग्रेज भारत छोड़कर गए तब पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर पूरे देश की रेलवे लाइन 65185 किलोमीटर लंबी थी | देश की पूरी रेल व्यवस्था देसी रजवाड़ों और प्राइवेट कंपनियों में बटी हुई थी | जिसे आजादी के तुरंत बाद भारतीय सरकार ने अपने कंट्रोल में लेना शुरू कर दिया | 


1947 me bharat keisa tha




किराए की बात करें तो पाई से लेकर कुछ आने था | 1947 के मुंबई में कुल 204 ट्रेनें दौड़ती थी | मुंबई शहर की आबादी तब 1600000 हुआ करती थी | पर उस वक्त मुंबई की सीमा सिर्फ अंधेरी तक की थी | अंधेरी के बाद का इलाका जोगेश्वरी आउट ऑफ मुंबई में गिना जाता था | सन 1947 में भारतीय मोटर गाड़ी सन 47  तक भारत में हिंदुस्तान मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी गाड़ियों का जमाना आ चुका था | यातायात की बात करें तो ओपन डबल डेकर और सिंगल देकर जैसे ही बसें दौड़ती थी किराया तब कुछ चार आने की आस पास था और पेट्रोल के दाम 41 पैसे प्रति लीटर थे सन् 1928 में अमेरिकन कंपनी जनरल मोटर्स का भारत में आगमन हुआ था | जनरल मोटर्स केशेवरलै ट्रक भारत में बहुत चलते थे | 

लेकिन आजादी के बाद ही 1948 में भारत सरकार ने जनरल मोटर्स कंपनी की छुट्टी कर दी क्योंकि जनरल मोटर्स हमारी देसी मोटर कंपनी हिंदुस्तान मोटर्स को कड़ी चुनौती दे आई थी | लेकिन इतिहास ने अपने आप को फिर दोहराया 50 साल बाद हिंदुस्तान मोटर्स ने ओपन कार बनाने के लिए उसी जनरल मोटर्स के साथ मिलकर वडोदरा के पास फैक्ट्री डाली | 


1947 भारतीय विमान : - आपको ताज्जुब होगा कि 1947 में भारत में इंडियन नेशनल एयरवेज,मिश्री एयरवेज,अंबिका  एयरवेज,कॉलिंग एयरवेज,डेक्कन एयरवेज एयर सर्विस ऑफ इंडिया,भारत एयरवेज,हिमालय एरवीशन ,डालमिया जेट एयरवेज,जुपिटर एयरवेज जैसी एरवीशन कंपनियां थी | भारत देश में उस वक्त इतनी सारी विमान सेवाएं होने का कारण यह कि 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने अपने कई सारे हवाई जहाज बेच दिए थे | कुछ धनि भारतीयों ने खरीद कर एयरलाइंस का बिजनेस शुरू कर दिया | कंपटीशन इतनी तकलीफ हुई कि ज्यादातर एयरलाइंस घाटे में आ गई कुछ 8 एयरलाइंस का भारत सरकार ने राष्ट्रीयकरण करके एक नाम दिया | जिसका नाम था  इंडियन एयरलाइंस और टाटा रिलायंस का तो नाम पहले से ही एयर इंडिया कर दिया गया था | 15 अगस्त 1947 के दिन भारत में कुल 15 एयरपोर्ट थे |  


1947 में भारतीय मुद्रा :- आजादी के वक्त भारत की करेंसी रुपया ही थी पर आजकल सोशल मीडिया पर बताए जाने वाले उसके रेट सही नहीं है | सोशल मीडिया पर आमतौर पर यह मैसेज वायरल होते हैं कितना भारत का ₹1 $1 के बराबर था | लेकिन वास्तव में सन 1947 में $1 बराबर 3.30  इंडियन रूपीस था | और एक पाउंड बराबर 30.33  इंडियन रुपीस | बेशक रूपया तक आज की रैली के मुकाबले बहुत मजबूत था | बंटवारे के दूसरे ही दिन पाकिस्तान के सामने यह प्रश्न था कि वह अपने देश में आर्थिक व्यवहार किस मुद्रा में करें | क्योंकि तब नोट छापने की छह प्रिंटिंग मशीन  थी |  छह की छह भारत की थी इसलिए पाकिस्तान में परमिशन लेकर उसी नोट पर  पाकिस्तान हुकूमत  लिखकर अपना काम चलाया | 


1947 me bharat keisa tha



सन 1947 में चीजों के दाम:- उस समय अच्छी क्वालिटी के 1 किलो चावल 26 पैसो में मिलते थे | शक्कर 57 पैसे किलो थी | केरोसिन 23 पैसे लीटर और 55 किलो सीमेंट सिर्फ ₹3 में मिलती थी | तब एक तोला गोल्ड की कीमत ₹103 थी | वैसे गोल्ड की कीमत भी सबसे पहले 39 इंडियन रुपीस थी | लेकिन विशेष के बाद उसे अचानक बढ़ा दिया गया इसलिए यह कीमत उस वक्त के लोगों को बहुत अधिक लग रही थी | और लगती भी क्यों ना तब लोगों की आय भी तो बहुत कम थी | उस वक्त भारतीयों की एवरेज इनकम सालाना  ₹265 थी | इतनी कम इन कम होने के कारण ज्यादातर लोग महंगाई कम होने के बावजूद भी उसने मजे नहीं ले सकते थे | आज के दौर में हम अधिक महंगाई में भी मजे मार रहे हैं टेक्नोलॉजी क्षेत्र में वॉशिंग मशीन,मिकचर,घरेलू फ्रिज,कंप्यूटर,मोबाइल,इंटरनेट,टेप रिकॉर्डर जैसे 160 किस्म के जीवन जरुरी आविष्कार उस वक्त ना होने के कारण उस समय की जीवन शैली आज के दौर से बहुत निम्न थी | 


1947 में भारतीय सिनेमा:- आजादी के साथ ही भारतीय परिषद में कुल 283 टीमें बनाई थी |  एक फ़िल्म डेढ़ लाख रुपए के खर्च से बनी थी | बंटवारे के बाद भारत में कोई थिएटर की संख्या 1384 थी | जबकि अलग से पाकिस्तान में कुल 117 थिएटर थे | तो दोस्तों हमारे पुरखो द्वारा बिताई  गई उस दौर की बातें आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं | 



शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

Shiv Tandav Kya Hai?

नमस्कार दोस्तों Pageofhistory में एक बार फिर आपका बहुत-बहुत स्वागत है आज हम History Of India In Hindi मे शिव और उनके तांडव के बारे में बात करेंगे | 



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शिव को दो अवस्था मे समझा जाता है एक समाधि की अवस्था जिसे अति संवेदनशील अवस्था भी कहते हैं | और दूसरी उनकी तांडव अवस्था जिसे नृत्य अवस्था भी कहा जाता है |  समाधी अवस्था उनकी निर्गुण अवस्था है  यह उनकी गैर भौतिक अवस्था है जिसमें शिव किसी रूप मे उपस्थित नहीं होते है | जबकि तांडव अवस्था उनकी सवगुण अवस्था है मतलब यह उनकी भौतिक अवस्था है जिसमें शिव किसी न किसी रूप में उपस्थित होते हैं |  ब्राह्मण शिव का नृत्य विद्यालय है उनका खेल मैदान है | विकी वर्तक नहीं है वे उसकी पर्यवेक्षक भी है असल में नटराज अपनी नृत्य के माध्यम से ब्रह्मांड में हलचल का निर्माण करने की भूमिका निभाते हैं जब वह नृत्य रोकते हैं दृश्य और अदृश्य निर्माण जो भी हुआ होता है स्वयं में विलीन कर लेते हैं | 



इसके बाद नटराज अकेले रहते हैं आनंद में तल्लीन हुए | संक्षेप में नटराज सभी ईश्वरी गतिविधि का प्रकट रूप है | 

नटराज का नृत्य भगवान के पांच कर्मो अर्थात सृष्टि,जीविका,विघटन,मोहमाया और प्रारंभ के आवरण का प्रतिनिधित्व करता है | तब फिर तांडव क्या है इसका वर्णन संगीत रत्नाकर के अध्याय 5 श्लोक 5 और 6 में मिलता है इसके अनुसार ऋषि भरत को शिव ने उद्धत नृत्य दिखाया | उन्होंने पार्वती से भी लास्य नृत्य कराया | इसमें हाथ मुक्त रहते हैं और लहरों की तरह बहते रहते हैं | तब ऋषि भरत को एहसास हुआ कि मृतक तांडव है जिसके बाद में उन्होंने इसे मानव सभ्यता तक पहुंचाया | 



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ऐसा नृत्य जिसमे शरीर हर कोशिका यानि की कण - कण से शिव ध्वनि प्रमुख रूप से निकलती है | तांडव कहा जाता है | ब्रह्मांड में जितनी भी हलचल है उसका कारण शिव तांडव ही है | तांडव के सात  प्रकार है आनंद तांडव, संध्या तांडव,कलिका तांडव,कृपुरा तांडव,गौरी तांडव,संघार तांडव,उमा तांडव  है | संध्या तांडव का वर्णन कुछ इस प्रकार मिलता है शिव जो तीनों लोकों के स्वामी है गौरी को दुर्लभ नगीनों से बना मुकुट प्रदान करते हैं |  और इस नृत्य को शाम के समय करते हैं | जब शिव नृत्य करते हैं | सरस्वती अपनी वीणा बजाती हैं | इंद्र बांसुरी बजाते हैं | ब्रह्मा मृदंग बजाते हैं और सारे देवता पास खड़े देखते हैं | इन सातों तांडव प्रकारों में गौरी तांडव और उमा तांडव सबसे भयावह और डरा देने वाले हैं | 



शिव वीरभद्र का रूप धारण करते हैं और गौरी के साथ ही रहते हैं | शिव भी नृत्य श्मशान में आत्माओं के बीच जहा लाशे जल रही होती है वहा करते है | शिव और शक्ति के अनुयायियों का मानना है कि यह सब नृत्य इन्हें विशिष्ट सिद्धांतों के प्रतीक हैं | इस तरह के विनाशकारी नृत्य शिव से न केवल संपूर्ण ब्रह्मांड का नाश कर देते हैं बल्कि जीवो और आत्माओं को सब बंधनों से मुक्त भी कर देते हैं | जबकि सभी देवी शक्तियां और राक्षसी शक्तियां तांडव के दौरान अत्यंत उत्साहित और शिव के निकट प्रतीत होती है | 



शिव तांडव स्त्रोत :-




जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। 

डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं

चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

 

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।

विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके

किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

 

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-

स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि

कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

 

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-

कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

 

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-

प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः

श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

 

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-

निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं

महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

 

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-

द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

 

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-

त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः

कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥ 

 

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-

विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

 

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-

रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं

गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

 

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-

द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

 

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-

र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

 

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥

 

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं

परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

 

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः

शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

 

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं

पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं

विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

 

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं

यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां

लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

 

॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥  > >




ओम नमः शिवाय



बुधवार, 8 जुलाई 2020

मौर्य वंश का इतिहास- प्राचीन भारत का सबसे महान वंश Part-2




हेलो दोस्तो आज हम हमारे ब्लॉग Pageofhistory में आपके लिए History Of India In Hindi में मौर्य वंश के बारे में जानकारी लेकर आये है | तो आइये जानते है मौर्य वंश के बारे मे. .


प्रशासन मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी | इसके अतिरिक्त साम्राज्य का प्रशासन के लिए चार और प्रांतों में बांटा गया था | पूर्वी भाग की राजधानी तोसाली थी तो दक्षिणी भाग की राजधानी सुवर्णगिरी थी इसी प्रकार उत्तरी तथा पश्चिमी भाग की राजधानी क्रमशः तक्षशिला तथा उज्जैन थी | जिसे उज्जैनी भी कहा जाता है | इसके अतिरिक्त समापा,अशीला तथा कौशांबी भी महत्वपूर्ण नगर थे | राज्य के प्रशासन को चलाने के लिए प्रांतपालो को नियुक्त किया जाता था | यह प्रांतपाल राजघराने की ही राजकुमार होते थे | जो स्थानीय प्रांतों के शासक थे | राजकुमारों की मदद के लिए हर प्रांत में एक मंत्री परिषद तथा महामात्य होते थे | प्रान्त आगे जिलों मे बटे होते थे | प्रत्येक जिला गांव के समूह में  बटा होता था | 


Ashok Chin pageofhistory


    


प्रदेशिक जिला प्रशासन का प्रधान होता था | रज्जुक जमीन को मापने का काम करता था | प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी | जिसका प्रधान ग्रामीण कहलाता था | कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में नगरों के प्रशासन के बारे में एक पूरा अध्याय लिखा है | विद्वानों का कहना है कि उस समय पाटलिपुत्र तथा अन्य नगरों का प्रशासन इस सिद्धांत के अनुरूप ही रहा होगा | मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र के प्रशासन का वर्णन किया है | उसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर का शासन एक नगर परिषद द्वारा किया जाता था | जिसमें 30 सदस्य होते थे यह 30 सदस्य भाजपा सदस्यों वाली 6 समितियों में बैठे होते थे | प्रत्येक समिति का कुछ निश्चित काम होता था | पहली समिति का काम औद्योगिक तथा कलात्मक उत्पादन से संबंधित था | इसका काम वेतन निर्धारित करना तथा मिलावट रोकना भी था | दूसरी समिति पाटलिपुत्र में बाहर से आने वाले लोगों को हंसकर विदेशियों के मामले देखती थी | तीसरी समिति का संबंध जन्म तथा मृत्यु के पंजीयन ज्योति समिति व्यापार तथा वाणिज्य का विनियम करती थी | इसका काम निर्मित माल की बिक्री तथा व्यापार पर नजर रखना था | पांचवी समिति माल के निर्माण पर नजर रखती थी तो छठी का काम कर वसूल करना था | नगर परिषद के द्वारा जन कल्याण के कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार के अधिकारी भी नियुक्त किये थे जैसे सड़कों,बाजार, चिकित्सालय,देवालयम,शिक्षण संस्थानों,जलापूर्ति,बंदरगाहों की मरम्मत तथा रखरखाव का काम करना | नगर का प्रमुख अधिकारी नागरिक कह लाता था | कौटिल्य ने नगर प्रशासन में कई विभागों का भी उल्लेख किया है जो नगर के कई कार्यकलापों को नियमित करते थे जैसे लेखा विभाग राजस्व विभाग खान तथा खनिज विभाग,विभाग सीमा शुल्क और कर विभाग मौर्य साम्राज्य के समय एक और बात जो भारत में अभूतपूर्व थी | 


वह ही मौर्य का गुप्त चरो का जाल उस समय पूरे राज्य में गुप्त चोरों का जाल बिछाया गया था जो राज्य पर किसी भी बाहरी आक्रमण का आंतरिक विद्रोह की खबर प्रशासन तक सेना तक पहुंचाने में सक्षम था | भारत में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासन काल में राष्ट्रीय राजनीतिक एकता स्थापित हुई थी | मौर्य प्रशासन में सत्ता का सुदृढ़ केंद्रीय कारण था परंतु राजा निरंकुश नहीं होता था | कौटिल्य ने राज्य सप्तांग सिद्धांत निर्दिष्ट किया था | जिसके आधार पर मौर्य प्रशासन और उसकी गृह तथा विदेश नीति संचालित होती थी | 




आर्थिक स्थिति :-

इतने बड़े साम्राज्य की स्थापना का एक परिणाम यह हुआ कि पूरे साम्राज्य में आर्थिक एकीकरण हुआ | 

किसानों को स्थानीय रूप से कोई कर नहीं देना पड़ता था | हालांकि इसके बदले उन्हें कड़ाई से पर भारी मात्रा में कर केंद्रीय अधिकारियों को देना पड़ता था | उस समय की मुद्रा और अर्थशास्त्र में अनपढ़ों के वेतन मानव का भी उल्लेख मिलता है | 




धार्मिक स्थिति :-

छठी सदी ईसा पूर्व यानी मोरियो के उदय से कोई 200 वर्ष पूर्व तक भारत में धार्मिक संप्रदायों का प्रचलन था | यह सभी धर्म किसी न किसी रूप से वैदिक प्रथा से जुड़े थे | छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कोई 62 संप्रदायों के अस्तित्व का पता चला | जिसमें बौद्ध तथा जैन संप्रदाय का उदय कालांतर में अन्य की अपेक्षा अधिक हुआ मौर्यों के आते-आते बहुत तथा जैन संप्रदायों का विकास हो चुका था | उधर दक्षिण में शेव तथा वैष्णव संप्रदाय भी विकसित हो रहे थे | चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना राज सिंहासन त्याग कर जैन धर्म अपना लिया था | ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने गुरु जैन मुनि भद्रबाहु के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में सन्यासी के रूप में रहने लगे थे | इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा ही पाया जाता है कि चंद्रगुप्त ने उसी स्थान पर एक सच्चे निष्ठावान चयन की तरह आमरण उपवास करके दम तोड़ा था | वह पास में ही चंद्र गिरी नाम की पहाड़ी है जिसका नामकरण चंद्रगुप्त के नाम पर ही किया गया था | अशोक ने भी कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपना लिया था | इसके बाद उसने धर्म के प्रचार में अपना सारा ध्यान लगा दिया यह धर्म का मतलब कोई धर्म या मजहब के रिलेशन ना होकर नैतिक सिद्धांत था | उस समय ना तो इस्लाम का जन्म हुआ था और ना ही ईसाई धर्म का अतः वह नैतिक सिद्धांत पर उस समय बाहर के किसी धर्म का विरोध करना ना होकर मनुष्य को एक नैतिक नियम प्रदान करना था | 



बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अशोक ने इसको जीवन में उतारने की भी कोशिश की उसने स्वीकार किया और पशुओं की हत्या छोड़ दिया और मनुष्य तथा जानवरों के लिए चिकित्सालयों की स्थापना भी कराई उसने ब्राह्मणों तथा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के संन्यासियों को उदारता पूर्वक दान भी दिया | इसके अलावा उसने आराम ग्रह एवं धर्मशाला बनवाए तथा बावरियों का भी निर्माण करवाया | उसने धर्म महापात्र नाम के पद वाले अधिकारियों की नियुक्ति की | उसका धर्म अब जनता का आम जनता में धर्म का प्रचार करना था | उसने विदेशों में भी अपने प्रचारक दल भेजे पड़ोसी देशों के अलावा मिस्र,सीरिया,मकदूनिया, यूनान तथा एपेरस में भी उसमें धर्म प्रचारकों को भेजा | हालांकि अशोक ने खुद बहुत धर्म अपना लिया था | पर उसने अन्य संप्रदायों के प्रति भी आदर का भाव रखा तथा उनके विरुद्ध किसी कार्यवाही का उल्लेख नहीं मिलता | 





सैन्य व्यवस्था :-

व्यवस्था 6 समितियों में बटे हुए विभाग द्वारा निर्देशित की जाती थी | प्रत्येक समिति में 5 सैन्य विशेषज्ञ होते थे | 

पैदल सेना,शिवसेना,गजसेना,रथसेना तथा नौसेना की व्यवस्था थी | सैनिक प्रबंधन का सर्वोच्च अधिकारी अंतपाल कहलाता था | यह सीमांत क्षेत्रों का भी व्यवस्थापक होता था | मेगास्थनीज के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में छह लाख पैदल सैनिक 50,000 अश्व,रोही 9000 हाथी तथा 800 औरतों से सुसज्जित अजय सैनिक थे | 





मौर्य साम्राज्य का पतन :-

अंतिम मौर्य सम्राट ब्रहद्रत की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी थी | इससे मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया | दोस्तों जानते हैं कि मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे | 

1. अयोग्य एवं निर्मल उत्तराधिकारी 

2.  प्रशासन का अत्यधिक केंद्रीय करण 

3.  राष्ट्रीय चेतना का भाग नंबर 

4. आर्थिक एवं सांस्कृतिक समानताएं 

5. प्रांतीय शासकों के अत्याचार 

6. करो की अधिकता  

7. अशोक की धम्म नीति 

8. अमात्यो के अत्याचार 


मौर्य कालीन सभ्यता के अवशेष भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह पाए गए हैं पटना यानी कि पाटलिपुत्र के पास कुमुरार में अशोक कालीन भग्नावशेष पाए गए हैं | अशोक के स्तंभ तथा शिलाओं पर उत्कीर्ण उपदेश साम्राज्य की अलग-अलग जगह मिले है जिससे हमें मौर्य वंश के इतिहास के बारे में एक विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है

तो दोस्तों आगे भी हम आपके लिए History Of India In Hindi मे लाते रहेंगे | 




मंगलवार, 7 जुलाई 2020

मौर्य वंश का इतिहास - प्राचीन भारत का सबसे महान वंश

हेलो दोस्तों आज हम हमारे ब्लॉग Pageofhistory में आपके लिए History Of India In Hindi में मौर्य वंश  के बारे में जानकारी लेकर आये है |  तो आइये जानते है मौर्य वंश के बारे मे. . . 

मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था | मौर्य राजवंश ने 137 साल तक भारत पर राज किया | इसकी स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य और उसके मंत्री कौटिल्य को दिया जाता है | यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों से शुरू हुआ जहां आज के बिहार और बंगाल स्थित है | इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जिसे आज पटना के नाम से जाना जाता है | चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ अपने साम्राज्य का विस्तार किया | उसने कई छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकंदर के आक्रमण के बाद पैदा हो गए थे | 316 ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तर पश्चिमी भारत पर अधिकार जमा लिया था और आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ | 


pageofhistoryu maurya



सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य राजवंश सबसे महान एवं शक्तिशाली बन कर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ | मौर्य वंश में चंद्रगुप्तमौर्य,बिंदुसार,अशोक,कुणाल,दशरथ,संप्रति,चालिसुख,देवबर्मन,शतब्रमण  और देवद्रत नाम के महान राजा हुए | चंद्रगुप्त मौर्य और मोरियो का मूल 325 ईसा पूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत पर सिकंदर का शासन था | यह वही इलाका है जहां आज का संपूर्ण पाकिस्तान स्थित है | जब सिकंदर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तो एक ब्राह्मण जिसका नाम चाणक्य था मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आया | चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता था | उनका वास्तविक ना विष्णुगुप्त था | उस समय मगध एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभर रहा था | जो पड़ोसी राज्यों की आंखों में कांटे की तरह चुभ रहा था उस समय मगध के सम्राट धनानंद ने चाणक्य को अपने दरबार से निकाल दिया था | उसने कहा कि तुम एक पंडित हो और अपनी चोटी का ही ध्यान रखो युद्ध करना राजा का काम है तुम सिर्फ भिक्षा मांगे इस प्रकार उनको अपमानित कर नंदवंशी शासक धनानंद ने उनकी शिखा पकड़कर दरबार से बाहर निकलवा दिया था | तभी चाणक्य ने प्रतिज्ञा ली कि धनानंद को एक दिन सबक सिखा कर रहेंगे | 


कुछ विद्वानों का मानना है कि चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति उनकी माता मोरा से मिली है मोरा शब्द का संशोधित शब्द मौर्य है यानी कि मोरा से ही मौर्य शब्द बना है हालांकि इतिहास में यह पहली बार देखा गया कि माता के नाम से पुत्र का वंश चला हो चंद्रगुप्त मौर्य एक शक्तिशाली शासक था | वह उसी गण प्रमुख का पुत्र था जो कि चंद्रगुप्त की बाल्यावस्था में ही एक योद्धा के रूप में मारा गया | चंद्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे | इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया एवं एक सफल और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र की नींव डाली जो आज तक एक आदर्श है | 



मगध पर विजय 

इसके बाद चाणक्य ने भारत भर में जासूसों का एक जाल सा दिया | जिससे राजा के खिलाफ गद्दारी इत्यादि की गुप्त सूचना एकत्र की जा सके उस समय यह एक अभूतपूर्व कदम था पूरे राज्य में गुप्त चरो का जाल बिछाने के बाद उसने चंद्रगुप्त को यूनानी आक्रमणकारियों को मार भगाने के लिए तैयार किया | इस कार्य में उसे गुप्त चोरों के विस्तृत जाल से बहुत मदद मिली | मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में गृह युद्ध को उकसाया उसके गुप्त चरो ननंद के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया | इसके बाद नंद ने अपना पद छोड़ दिया और चाणक्य को विजयश्री प्राप्त हुई नंद को निर्वासित जीवन जीना पड़ा | जिसके बाद उसका क्या हुआ यह एक रहस्य है आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास जीता और इसके साथ उसको सत्ता का अधिकार भी मिल गया | 


चंद्रगुप्त का साम्राज्य विस्तार उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था | मगध पर कब्जा होने के बाद चंद्रगुप्त सत्ता के केंद्र पर काबिज हो चुका था | चंद्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ कर दिया | इसकी जानकारी अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से मिलती है | रुद्रदामन का जूनागढ़ शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बांध से पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था | पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय राज्यपाल था | उत्तर पश्चिमी भारत को यूनानी शासक से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया |  चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को 305 पूर्व के आसपास हराया था | ग्रीक विवरण पर इस विषय का उल्लेख नहीं है पर इतना कहा जाता है कि चंद्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने कंधार,काबुल,हेरात और बलूचिस्तान के प्रदेश चंद्रगुप्त को दे दिया था | 



इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने 500 हाथी भेंट किए थे | यह भी कहा जाता है कि चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी करनालिया से विवाह कर लिया था | करनालिया को हिलना भी कहा जाता है | कहा जाता है कि यह पहला अंतरराष्ट्रीय विवाह था | सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था | प्लूटार के अनुसार सेन्डकोट्र्स यानी चंद्रगुप्त उस समय तक सिंहासन पर आसीन हो चुका था | उसने अपनी 600000 सैनिकों की विशाल सेना से संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त कर ली और अपने अधीन कर लिया यह टिप्पणी थोड़ी अतिशयोक्ति ही कही जा सकती है क्योंकि इतना ज्ञात है कि कावेरी नदी और उसके दक्षिण के क्षेत्रों में उस समय जो लोग पांडेय सत्य पुत्रों तथा केरल पुत्रों का शासन था | 




अशोक के शिलालेख कर्नाटक में चित्रलदुर्ग एरागुड़ी तथा मास्की में पाए गए हैं | उसके शीला लिखित धर्म उपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल,पांडे तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है क्योंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती यशो या उसके पिता बिंदुसार ने दक्षिण में कोई युद्ध लड़ा हो और उसमें विजय प्राप्त की हो ऐसा माना जाता है कि उन पर चंद्रगुप्त ने हीं विजय प्राप्त की थी | 


बिंदुसार 

चंद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार सत्तारूढ़ हुआ पर उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है | दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार का श्रेय आमतौर पर बिंदुसार को ही दिया जाता है हालांकि उसके विजय अभियान का कोई साक्ष्य नहीं है जैन परंपरा के अनुसार उसकी मां का नाम ढूंढ था | पुराणों में वर्णित बिंदुसार ने 25 वर्षों तक शासन किया था | उसे अमित्र घाट यानी दुश्मनों का संघार करने वाला की उपाधि भी दी गई थी जिस यूनानी ग्रंथों में

अमितरुकेडिश का नाम दिया जाता है | बिंदुसार आजीवक धर्म को मानता था | उसने एक यूनानी शासक एंटीऑक्स प्रथम से सूखेअंजीर,मीठीशराब,दार्शनिक की मांग की थी उसे अंजीर व शराब दी गई किन्तु दार्शनिक देने से इंकार कर दिया गया | 



चक्रवर्ती सम्राट अशोक

अशोक सम्राट अशोक भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक है | साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में उनका नाम अकबर जैसे महान शासकों के साथ लिया जाता है | हालांकि वे अकबर से बहुत शक्तिशाली एवं महान सम्राट रहे हैं कई विद्वान तो सम्राट अशोक को विश्व इतिहास के सबसे सफलतम शासक भी मानते हैं | अपने राजकुमार के दिनों में उन्होंने उज्जैन तथा तक्षशिला के विद्रोह को दबा दिया था | कलिंग की लड़ाई उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई उनका मन युद्ध में नरसंहार से ग्लानि से भर गया | 


Pageofhistory buddha




उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया तथा उसके प्रचार के लिए बहुत कार्य किए सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में उपगुप्त निदिशित किया था | उन्होंने देवनाम्प्रिया और प्रियदर्शी जैसी उपाधि धारण की सम्राट अशोक के शिलालेख तथा सेवाओं पर उत्कीर्ण उपदेश भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह पाए गए हैं | उसने धर्म का प्रचार करने के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजें जिन जिन देशों में प्रचारक भेजे गए उनमें सीरिया तथा पश्चिमी एशिया का एनपीओकश्तियों,मिश्र का टॉलमीफिलाडेलस, मगदुनिया का एंटीगोनिश गोनाट्स, शायरीइन का मेगास तथा अपायर्स का एलेग्जेंडर शामिल थे | अपने पुत्र महेंद्र और एक बेटी को उन्होंने राजधानी पाटलिपुत्र से श्रीलंका जल मार्ग से रवाना किया | पटना यानी पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक महेंद्र घाट का नाम उसी महेंद्र के नाम पर रखा गया है | युद्ध से मन ऊब जाने के बाद भी सम्राट अशोक ने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था | ऐसा विदेशी आक्रमण से अपने साम्राज्य को बचाने के लिए आवश्यक था | दोस्तों अगले भाग History Of India In Hindi में हम मौर्य साम्राज्य के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात करेंगे | 



सोमवार, 29 जून 2020

Geeta में लिखी 10 भयंकर बातें , कलियुग में हो रही हैं सच !!

हेलो दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग Pageofhistory मे | तो दोस्तों आज हम आपको हमारे ब्लॉग में History Of India In Hindi बताएंगे की Geeta में क्या 10 बाते है | हमारी History Of India में ये पहले ही बता दिया गया था की आगे भविष्य में क्या होगा | 

Geeta में कही गई है यह 10 भयानक बातें जो कलयुग में सच हो रहे हैं | कौन सी है वह 10 बातें आइए जानते हैं |  



Geeta Saar



1.पहली बात कलयुग में धर्म,स्वच्छता,सत्यवादीता,स्मृति,शारीरिक शक्ति,दया,भाव और जीवन की अवधि तक घटती जाएगी | 


2.दूसरी बात कलयुग में गुणी वही व्यक्ति माना जाएगा | जिसके पास अधिक धन है न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पर होगा | 


3.तीसरी बात कलयुग में स्त्री पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे |  मनुष्य व्यापार की सफलता के लिए छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे | 


Geeta - pageofhistory


4.चौथी बात घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च कर खर्च कर पाएगा | उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खानी होगी स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जाएगा | 


5.पांचवी बाद कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे लोगों को कई तरह की चिंताएं सताएगी | और -नुष्य की उम्र घटकर सिर्फ 70 - 80 साल की रह जाएगी | 


6.छठी  बात लोग दूर के नदी तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान मानकर वहा जाएंगे | लेकिन अपनी ही माता-पिता  का अनादर करेंगे | सर पर बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर बुरे प्रकार के बुरे काम करेंगे |


7.सातवीं बात कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा | 

कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी | और इन्हीं परिस्थितियों से लोग परेशान रहेंगे | 


Geeta 3- pageofhistory



8.आठवीं बात कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा | उसे लोग अपवित्र,बेकार और अधर्मी मानेंगे | विवाह के नाम पर सिर्फ समझौता होगा | लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे | 


9.नवी बात लोग सिर्फ दूसरों के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म,कर्म के सारे काम करेंगे | कलयुग में दिखा बहुत होगा और पृथ्वी पर भ्रष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे | लोकसत्ताकी  शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे | 


10.दसवीं बात पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर और सूखे की वजह से घर छोड़ पहाड़ों पर रहने के लिए मजबूर हो जाएंगे |  कलयुग में ऐसा आएगा जब लोग पत्ते,माँस,फूल और जंगली शहद जैसी चीजें खाने को मजबूर होंगे | Geeta में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा लिखी गई यह बातें इस कलयुग में सच होती दिखाई दे रहे हैं | हिंदू धर्म कितना पुराना है हमें गर्व है कि श्री कृष्ण जैसे अवतारों ने पृथ्वी पर आकर कलयुग की भविष्यवाणी इतनी पहले ही कर दी थी लेकिन फिर भी आज का मनुष्य अभी तक कोई सबक नहीं ले पाया उम्मीद है दोस्तों यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी | History Of India In Hindi मे जानने के लिए पढ़ते रहे हमारा ब्लॉग | धन्यवाद् 


 

Bhagwat Geeta-Pageofhistory


गुरुवार, 25 जून 2020

Bharat Ko Sone Ki Chidiya Kyu Kaha Jata Tha?


Bharat Ko Sone Ki Chidiya Kyu Kaha Jata Tha - History Of India In Hindi 


अगर आप भारतीय इतिहास के पन्नों को पलट कर देखेंगे तो आपको उसमें एक ऐसे दौर का जिक्र भी मिलेगा जब भारत पूरी दुनिया में विश्व गुरु के तौर पर अपनी एक अलग ही पहचान रखता था | पूरी दुनिया भारत को सोने की चिड़िया के नाम से जानती थी क्योंकि यह देश हर तरह से समृद्धि था और इसीलिए इस सोने की चिड़िया पर बाहरी लोगों ने बार बार आक्रमण किया है और यहां की दौलत लूट कर लुटेरे अपने अपने देश ले गए हैं इस देश की जनता को देखकर ही बाहरी लोगों ने भारत की सरजमीं पर आकर इस सोने की चिड़िया को गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर रख लिया था पर क्या आप यह जानते हैं कि भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था तो आज के इस पोस्ट में हम महान भारत के उस महान गाथा के बारे में बात करेंगे कि सबसे पहले किसने सोने की चिड़िया नाम से संबोधित किया था | किसकी वजह से भारत को सोने की चिड़िया का खिताब मिला था | किन-किन चीजों का उत्पादन और किन-किन चीजों की निर्यात करता था | 

 

उस समय भारत की अर्थव्यवस्था कितनी थी फिर मुगल काल में अर्थव्यवस्था कितनी थी | अंग्रेज काल में और आज भारत की अर्थव्यवस्था कितनी है | सोने के सिक्के बनने शुरू कब हुए थे | ऐसे कई मुद्दों पर हम बात करेंगे | सबसे पहले हम बात करेंगे कि भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था तो मौर्य एंपायर के दौरान भारत धीरे-धीरे समृद्ध होने लगा क्योंकि उनके अलग-अलग राजाओं ने अच्छे से शासन किया | गुप्ता एंपायर आते-आते भारत दुनिया का सबसे समृद्ध देश बन गया था | इसलिए भारत को पहली सदी से लेकर 11 वीं शताब्दी तक सोने की चिड़िया कहा जाता था | 




Sone ki chidiya - pageofhistory




प्राचीन भारत वैश्विक व्यापार का केंद्र था | यह दुनिया का सबसे विकसित देश था उस समय भारत मसालों के व्यापार में दुनिया का सबसे बड़ा देश दुनिया के संपूर्ण उत्पादन का 40% हिस्सा अकेले भारत में उत्पादन होता था|  दुनिया की कुल आय का 27% हिस्सा भारत का होता था क्योंकि उस समय भारत में घर-घर में कपास से सूत बनाया जाता था लोहे के औजार बनाए जाते थे | हर घर में लघु उद्योग थे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि भारत प्राचीन काल में सिर्फ मसालों के निर्यात मे ही आगे था | लेकिन भारत मसालों के अलावा चीजों के निर्यात में दुनिया का सबसे अग्रणी देश था | 




तो अब हम उन चीजों की बात करेंगे जो भारत से काफी मात्रा में निर्यात की जाती थी जिसमें कपास,चावल,गेहूं,चीनी जबकि मसालों में मुख्य रूप से हल्दी,कालीमिर्च,दालचीनी,जटामांसी इत्यादि शामिल थे |  इसके अलावा आलू,तिल का तेल,हीरे,नीलमणि के साथ-साथ पशु उत्पादन,रेशम, शराब और धातु उत्पादन जैसे ज्वेलरी,चांदी के बने पदार्थ निर्यात किए जाते थे | इसलिए हर दृष्टि से सुंदर,समृद्धि,वेद,व्यापार,मंडल और राजाओं का देश और नदिया और महासागरों से भरा जंगली जानवर पशु और हाथियों से समृद्ध अलग-अलग धर्म अलग-अलग भाषाएं हर क्षेत्र में आगे था | 


यहाँ सामान के बदले सोना लिया जाता था इसलिए सभी देश भारत के साथ व्यापर करना चाहते थे | धीरे-धीरे यहां पर वस्तु विनिमय को बदलकर मुद्रा का उपयोग शुरू हुआ | तब  सोने के बने मुद्रा का उपयोग किया जाने लगा |  धीरे-धीरे चांदी के सिक्के का प्रचलन आया | और भी ऐसे बहुत से कारण थे जिससे भारत को सोने की चिड़िया का ख़िताब मिला |  



इसके अलावा और भी कई कारण थे तो अब हम उसके बाद करेंगे तो सातवीं सदी बाद भारत में बाहरी लोगों के आक्रमण शुरू हो गए थे | जिसमें तुर्क,अरबी,इस्लामिक,गाने,पुर्तगाली,डच और आखिर में अंग्रेज शामिल थे | जिसमें 1000 साल के मुगल और अन्य आक्रमणकारियों के शासन के बाद भी दुनिया की जीडीपी में अकेले भारत की अर्थव्यवस्था का योगदान 25% के बराबर था | मुगलों के शासन के पहले भारत 1 से 11 वीं सदी के बीच दुनिया के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी | और जब मुगलों ने 1526 से लेकर 1793 के बीच भारत पर शासन किया | उस समय भारत की आय 17 पॉइंट 5 मिलियन पाउंड थी जो की ग्रेट ब्रिटेन की आय से ज्यादा थी |  साल 1600 भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 1305 डॉलर थी इसी समय ब्रिटेन के प्रति व्यक्ति जीडीपी 1137 डॉलर अमेरिका की प्रति व्यक्ति 897 डॉलर और चाइना की प्रति व्यक्ति जीडीपी 940 डॉलर और यह मेरे आकड़े नहीं है यह इतिहास बताता है |



मीर जाफर ने ईस्ट इंडिया कंपनी 1757 मे 9 मिलियन पौंड का भुगतान किया था | यह सनातन सत्य भारत की सम्पनता को दर्शाने के लिए बड़ा सबूत है पर इस समय भारत की अर्थव्यवस्था की बात करें तो साल पंद्रह सौ के आसपास दुनिया की आय में भारत की हिस्सेदारी 24.5 % थी | जो कि पूरे यूरोप की आय के बराबर थी और उसके बाद अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा किया और अंग्रेजों ने भारत की अर्थव्यवस्था तहस - नहस कर दिया | 

जब अंग्रेज  भारत को छोड़कर गए तब भारत का विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान मात्र 2 से 3% रह गया था | इस हद तक उन्होंने भारत को लूट लिया था | लेकिन जब भारत विश्व गुरु था उस समय में सिक्कों को बनाने वाले पहले देशों में शामिल हुआ था | आज से 26 साल पहले भारत के महाजनपदों में चांदी के सिक्के के साथ शिक्षा प्रणाली शुरू की थी | 



ग्रीक के साथ-साथ पैसे पर आधारित व्यापार को अपनाने वाले पहले देश में भारत का स्थान अग्रणी था | लगभग 350 ईसा पूर्व में चाणक्य ने भारत में मौर्य साम्राज्य के लिए आर्थिक संरचना की नीव डाली थी |अब भारत को सोने की चिड़िया कहते थे | तो उसके पास सोने की कुछ बेशकीमती चीजें भी थी | सबसे पहले मोर सिहासन के बारे में बात करेंगे | भारत में मोर सिहासन था जिसे मयूर शासन के तख्ते ताऊस भी कहते हैं इस आसन को बनाने के लिए जितना धन लगाया गया था इतने धन में तो दो ताजमहल का निर्माण किया जा सकता था | मयूर सिंहासन का निर्माण शाहजहां द्वारा 70 वीं शताब्दी में शुरू किया गया था जिसे बनाने के लिए करीब 1000 किलो सोने और बेशकीमती पत्थरों का प्रयोग किया गया था और इस पर बेशकीमती हीरे भी जड़े थे |  मयूर सिंहासन की कीमत उसमें लगे कोहिनूर हीरे के कारण बहुत बढ़ गई थी | इसलिए इतना कीमती होने के कारण साल 1739 में नादिरशाह से लूटकर ले गया था | 




उसके बाद कोहिनूर हीरा कोहिनूर हीरा दुनिया का सबसे बड़ा हीरा है | जिसका वजन 21 ग्राम है और बाजार में इसकी वर्तमान कीमत $1000000000 आंकी जाते हैं | यहां गोलकुंडा की खदान से मिला था | जो आंध्र प्रदेश में है और दक्षिण भारत के राजवंश को इसका प्राथमिक हकदार माना जाता है | इसे कहीं देश पाने के प्रयास कर रहे हैं आजकल यह हीरा ब्रिटेन की महारानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा है यह हिरा भारत की भूमि में हीरा पाया गया था | जो भारत का वैभव को दर्शाता है उसके बाद मंदिरों में सोने के भंडार वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने कुछ समय पहले एक आंदोलन में कहा था कि भारत में अभी भी 22000 टन सोना लोगों के पास है जिसमें लगभग 3000 से 4000 टन सोना भारत के मंदिरों में अभी भी है | एक अनुमान के मुताबिक भारत के 13 मंदिरों के पास भारत के सभी अरबपतियों से भी ज्यादा धन है | 




मंदिर के आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो भारत कल भी सोने की चिड़िया था और आज भी है |  भारत के कुछ मंदिरों में इतना सोना रखा हुआ है कि कुछ राज्यों के पूरी आईपी मंदिरों की आय से कम है | अगर साल दो हजार अट्ठारह उन्नीस के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि केरल सरकार के वार्षिक आय 1 पॉइंट जीरो तीन लाख करोड़ है जो कि इतने केरल पद्मनाथ स्वामी मंदिर के किसी कोने से मिल जाएगा | 

तो इसके बाद हम उसी मंदिर की बात करेंगे पद्मनाथ स्वामी मंदिर यहां मंदिर केरल राज्य के त्रिभुवनपुरम में स्थापित है जो 5000 साल पुराना है यह दुनिया के सबसे रहस्यमई मंदिरों में से एक है क्योंकि इसमें एक दरवाजे का रहस्य है जिसे आज तक कोई नहीं खोल पाया आज भी दरवाजे पर क्वेश्चन मार्क लगा है | इस मंदिर में 6 तयखाना है जिन्हें ए बी सी डी ई एफ नाम दिया गया है | उसमें से कुछ दरवाजे तो खुल गए है जिसमें बेशकीमती सोना हीरा रत्ना मूर्तियां और कई कीमती रत्न है जिनकी कीमत लगाना भी मुश्किल है पर इसमें बी दरवाजे को आज तक कोई नहीं खोल पाया |


उसके बाद मोहम्मद गजनी के लूट :-

मोहम्मद गजनी का सोमनाथ के मंदिर पर हमला करने के लिए 2 सबसे बड़े उद्देश्य थे एक इस्लाम का प्रचार करना और दूसरा भारत से धन की लूट करना मोहम्मद गजनी ने नवंबर 1001 में पेशावर के युद्ध में जयपाल को हराया था | 



गजनी ने इस युद्ध में चार लाख सोने के सिक्के लुटे और एक सिक्के का वजन 120 ग्राम था | इसके अलावा उसने राजा के लड़कों और राजा जयपाल को छोड़ने के लिए भी 4 पॉइंट 5 लाख सोने के सिक्के लिए थे | आज के समय के हिसाब से एक अरब डॉलर की लूट की थी राजा जयपल के वहा से की थी | और उसने ही सोमनाथ मंदिर को भी लूटा था | साल 1025 में मोहम्मद ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटा था | इस दौरान उसने 2 मिलियन दीनारों की लूट की थी उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी लूट थी | 




खनिज और उनका उपयोग:-

भारत में खनिजों का भंडार है जैसे सोना,लोहा,तांबा,मैग्नीज,टाइटेनियम,क्रोमाइट,बॉक्साइट,केनाईट,सोना पत्थर,नमक, हीरा,परमाणु खनिज जिप्सम,अभ्रक आदि का भारत में न केवल उत्पादन किया जाता था बल्कि देश विदेशों में निर्यात किया जाता था | ओड़िसा से सबसे अधिक बॉक्साइट और मैगजीन का उत्पादन होता है
| कोयले के उत्पादन में भारत तीसरे नंबर पर है उसके बाद कृष्णा नदी पर स्वर्णरेखा नदी कृष्णा नदी है | जिस पर देश-विदेश के लोगों की नजर टिकी है सोना उगलने वाली यह नदी झारखंड की घाटियों में बहती है इस नदी से सैकड़ों सालों से सोने के कण निकल रहे हैं | इस बात का आज तक पता नहीं चला कि यह सोने के कण कहां से इस नदी में आ रहे हैं 

यहाँ रहने वाले स्थानीय निवासी इस नदी की रेत में से चांद कर सोने के कान निकाल कर बहुत सस्ते दाम में बेच देते हैं | यह दुनिया में एकमात्र नदी है जो सोना उगलती है तो ऐसी कई बाते है जो यह साबित करती हैं कि यह देश सोने की चिड़िया क्यों था | 

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